UNFCCC – संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा अभिसमय
(United Nations Framework Convention on Climate Change)
परिचय
यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि (International Treaty) है।
इसे 1992 में रियो डी जनेरियो (ब्राज़ील) में हुए “Earth Summit” में अपनाया गया।
यह संधि 21 मार्च 1994 से लागू हुई।
वर्तमान में इसके 190 से अधिक देश (Parties) सदस्य हैं।
मुख्य उद्देश्य
1. वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) की सांद्रता को स्थिर करना।
2. जलवायु तंत्र (Climate System) पर खतरनाक मानवजनित (मानव द्वारा उत्पन्न) हस्तक्षेप को रोकना।
3. सतत विकास (Sustainable Development) को बढ़ावा देना।
4. विकसित देशों को अधिक ज़िम्मेदारी देना, क्योंकि उन्होंने ऐतिहासिक रूप से अधिक प्रदूषण किया है।
महत्वपूर्ण विशेषताएँ
यह एक “Framework Convention” है, यानी यह सिर्फ़ रूपरेखा तय करती है।
इसके तहत COP (Conference of Parties) की बैठक हर साल होती है।
समय-समय पर नए प्रोटोकॉल/समझौते लाए गए, जैसे:
क्योटो प्रोटोकॉल (1997) – विकसित देशों के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य तय किए।
पेरिस समझौता (2015) – तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे और कोशिश करके 1.5°C तक सीमित करने का लक्ष्य रखा।
भारत और UNFCCC
भारत 1993 में सदस्य बना।
भारत विकासशील देशों के समूह (G-77 और BASIC देशों) के साथ मिलकर जलवायु न्याय (Climate Justice) और समान लेकिन भिन्न जिम्मेदारियों (Common but Differentiated Responsibilities – CBDR) की वकालत करता है।
📌 UNFCCC क्या है?
यह एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणीय संधि है।
उद्देश्य: जलवायु परिवर्तन की समस्या का वैश्विक स्तर पर समाधान करना।
इसे 1992 के Earth Summit (Rio de Janeiro, Brazil) में स्वीकार किया गया।
लागू हुआ: 21 मार्च 1994।
मुख्यालय: बॉन (Bonn), जर्मनी।
इसके लगभग 198 सदस्य (Parties) हैं (लगभग पूरे विश्व के देश)।
📌 उद्देश्य (Objectives)
1. वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) की सांद्रता को सुरक्षित स्तर पर स्थिर करना।
2. जलवायु तंत्र (Climate System) पर खतरनाक मानवीय हस्तक्षेप को रोकना।
3. देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने (Adaptation) में मदद करना।
4. सतत विकास (Sustainable Development) को बढ़ावा देना।
प्रमुख सिद्धांत (Principles)
1. समान लेकिन भिन्न जिम्मेदारियाँ (Common But Differentiated Responsibilities – CBDR):
विकसित देश अधिक जिम्मेदार क्योंकि उन्होंने ऐतिहासिक रूप से ज़्यादा प्रदूषण किया।
2. सतर्कता का सिद्धांत (Precautionary Principle):
वैज्ञानिक अनिश्चितता होने पर भी पर्यावरण की रक्षा के लिए कदम उठाने चाहिए।
3. सतत विकास (Sustainable Development):
विकास और पर्यावरण संरक्षण साथ-साथ चलें।
4. अंतरराष्ट्रीय सहयोग (International Cooperation):
विकसित देशों को विकासशील देशों की मदद करनी चाहिए (वित्त, प्रौद्योगिकी, क्षमता निर्माण)।
संस्थागत ढांचा (Institutional Structure)
1. Conference of Parties (COP):
सभी सदस्य देशों की सालाना बैठक।
जलवायु परिवर्तन से निपटने के फैसले लिए जाते हैं।
जैसे – COP3 (क्योटो), COP21 (पेरिस)।
2. Subsidiary Bodies:
SBSTA (Subsidiary Body for Scientific and Technological Advice) – वैज्ञानिक/तकनीकी सलाह।
SBI (Subsidiary Body for Implementation) – निर्णयों का क्रियान्वयन।
3. Secretariat:
बॉन (जर्मनी) में स्थित, सभी कार्यों का समन्वय करता है।
प्रमुख समझौते (Major Agreements under UNFCCC)
1. क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol, 1997 – लागू 2005):
विकसित देशों पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन घटाने के कानूनी लक्ष्य।
“Carbon Trading” और “Clean Development Mechanism (CDM)” जैसी व्यवस्थाएँ।
2. पेरिस समझौता (Paris Agreement, 2015 – COP21):
लक्ष्य: औद्योगिक क्रांति-पूर्व स्तर से तापमान वृद्धि 2°C से नीचे और कोशिश करके 1.5°C तक सीमित करना।
NDCs (Nationally Determined Contributions): हर देश अपनी जलवायु योजना पेश करता है।
कोई कानूनी दंड नहीं, लेकिन रिपोर्टिंग और निगरानी ज़रूरी।
3. ग्लासगो समझौता (COP26, 2021):
कोयले के उपयोग को “phase down” करने पर सहमति।
2030 तक GHG उत्सर्जन घटाने पर ज़ोर।
4. शर्म-अल-शेख कार्यान्वयन योजना (COP27, 2022):
“Loss and Damage Fund” बनाने का निर्णय (जलवायु आपदाओं से पीड़ित गरीब देशों की मदद के लिए)।
5. दुबई, COP28 (2023):
पहली Global Stocktake रिपोर्ट जारी।
जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटाने पर चर्चा।
भारत और UNFCCC
भारत ने 1993 में UNFCCC को अनुमोदित किया।
भारत का रुख –
विकसित देश ज्यादा जिम्मेदार हैं।
जलवायु न्याय (Climate Justice) और CBDR पर ज़ोर।
भारत की पहल:
राष्ट्रीय कार्य योजना जलवायु परिवर्तन पर (NAPCC, 2008)।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA, 2015) – भारत और फ्रांस की पहल।
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