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शनिवार, 15 अक्टूबर 2022

राजस्थान के प्रमुख लोकनृत्य

          राजस्थान के प्रमुख लोकनृत्य 


   गरासिया


वालर नृत्य – बिना किसी वाद्य यंत्र के स्त्री-पुरुषों द्वारा दो                            अर्द्धवृतों में धीमी गति का नृत्य।


कूद नृत्य – गरासिया स्त्री-पुरुषों द्वारा तालियों की ध्वनि पर                        बिना वाद्य यंत्र का नृत्य।


जवारा नृत्य – होली दहन के समय स्त्री-पुरुषों द्वारा नृत्य।


लूर नृत्य – लूर गौत्र की स्त्रियों द्वारा वधू पक्ष से रिश्ते की मांग                     करने का नृत्य।


मोरिया नृत्य – विवाह के अवसर पर पुरुषों का समुह नृत्य।


मांदल नृत्य – मांगलिक अवसरों  पर स्त्रियों का वृताकार नृत्य।


रायण नृत्य – मांगलिक अवसरों पर पुरुषों का नृत्य।


गौर नृत्य– गणगौर पर स्त्री-पुरुषों का सामूहिक नृत्य।


भील


1गवरी(राई) नृत्य – गवरी उत्सव पार्वती की आराधना में 40                              दिन चलता है। इसमें शिव व भस्मासुर की कथा                          का अधिक प्रचलन है। शिव को पुरिया और                              मसखरे को कुटकुड़िया कहा जाता हैं।


गैर नृत्य – होली के अवसर पर भील पुरुषों द्वारा किया जाने                       वाला सामूहिक वृताकार नृत्य।


नेजा नृत्य – होली व मांगलिक अवसरों पर भील स्त्रियों का                          सामूहिक खेल-नृत्य।


द्विचक्री नृत्य – विवाह वह मांगलिक अवसरों पर पुरुष बाहरी                           वृत और महिलाएं अंदर के  वृत में नाचती है।


घूमरा नृत्य – मांगलिक अवसरों पर भील महिलाओ द्वारा ढोल                     व थाली पर किया जाने वाला नृत्य।


हाथीमना नृत्य – विवाह के अवसर पर किया जाता है।


युद्ध नृत्य  – दो दलों द्वारा युद्ध का अभिनय करते हुए किया                          जाता है।


     कथोड़ी


मावलिया नृत्य – नवरात्रों में उदयपुर के कथोड़ी पुरुषों द्वारा                              किया जाने वाला समूह नृत्य।


होली नृत्य – होली के अवसर पर कथौड़ी  महिलाओं द्वारा                            किया जाने वाला समुह नृत्य।


  सहरिया


शिकारी नृत्य –  बाँरा जिले के सहरिया पुरुषों द्वारा शिकार का                           अभिनय करते हुए किया जाता है।


लहँगी नृत्य – सहरियो का सामूहिक नृत्य।


    कंजर


चकरी नृत्य – कंजर बालाओ द्वारा तेज गति से किया जाने                      वाला चक्राकार  नृत्य, जो हाड़ौती क्षेत्र में प्रसिद्ध है।


धाकड़ नृत्य – कंजरो द्वारा झाला पाव की विजय की खुशी में                          किया जाने वाला युद्ध नृत्य।


   कालबेलिया


इण्डोणी नृत्य – स्त्री पुरुषों द्वारा पूँगी व खंजरी वाद्य पर किया                       जाने वाला वृताकार नृत्य।


शंकरिया नृत्य –  कालबेलियों का आकर्षक प्रेमकथा                                 आधारित  युगल-नृत्य।


पणिहारी नृत्य – पणिहारी गीत के साथ युगल-नृत्य।


बागड़िया नृत्य – स्त्रियों द्वारा भीख मांगते समय किया जाता है                             गुलाबो ने कालबेलिया नृत्य को अंतर्राष्ट्रीय                                पहचान दिलाई।


  अन्य नृत्य


▪️चरी नृत्य – किशनगढ़ अजमेर क्षेत्र में गुर्जर महिलाएं मांगलिक अवसरों पर सिर पर चरी बर्तन से दीपक जलाकर नृत्य करती है फलकूबाई प्रसिद्ध चरी नृत्यांगना है।


▪️रणबाजा रतवई नृत्य – स्त्री-पुरुषों द्वारा मिलकर मांगलिक अवसरों पर किया जाता है मेव स्त्रियां सिर पर इण्डोणी व खारी नृत्य करती है और पुरुष अलगोजा व टामक बजाते है।




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